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मुनि श्री
सम्बोध कुमार जी,
(लिलवा) कोलकाता
दीक्षा : 31 अक्टूबर 1998 ( सरदारशहर
)
परिचय : मुनि श्री सम्बोध कुमार जी ( मूल
नाम संजय छाजेड़ ) का जन्म कोलकाता ( पश्चिम बंगाल ) के छाजेड़ (ओसवाल) गोत्र में 19 मई 1983 को हुआ। उनके
पिता का नाम श्री गुलाब चंद जी छाजेड़ (दिवंगत) और माता का श्रीमती विमला देवी
छाजेड़ (साध्वी श्री विनीत प्रभा जी) है।
वैराग्य : बचपन से क्रिकेट में अपना भविष्य
तलाशता संजय पहले बंगाली एरिया में रहने से साधु साध्वियों से संपर्क में नहीं
आया। इसी माहौल में अपने 11 साल
खर्च करने से जैन कॉलोनी में आने के बावजूद यदा कदा पधारने वाले साधु साध्वियों के
दर्शन करने से कतराता। फिर मिला एक संयोजक मूर्तिपूजक आचार्य, वे उसे रोज कोई
ना कोई गिफ्ट देते, बाल सुलभ
चपलता रोज उपहार के बहाने उसे उन आचार्य तक पहुंचा देता। उसे पता ही नहीं चला कब
उसका मन जीवन भर उनके साथ रहने के लिए प्रेरित हो गया। आचार्य ने वहा से विहार
किया तो संजय भी उनके साथ चल पड़ा, सभी ने मंगल पाठ सुनकर अपने-अपने घर की ओर कूच कर
दिया। मगर संजय अभी भी उनके साथ चल रहा था, पीछे से माँ ने हाथ खींच लिया और झूठा मगर दिलासा देते
हुए कहा कि परीक्षा के बाद में स्वयं तुम्हें भेज दूंगी मगर उन्हें कहां भेजना था
आचार्य के साथ। समय बीतता गया कोलकाता समणी अक्षय प्रज्ञा जी के साथ समणी निर्मल
प्रज्ञा जी का आगमन हुआ। उन्हें पता चला कि संजय के मन में वैराग्य चल रहा है, वे उसे अपने पास
बुलाकर तेरापंथ की रीति नीति समझाते हुए बताया : हम तेरापंथी हैं तो दीक्षा भी
हमें अपने गुरु से ही लेनी है। और धीरे-धीरे संजय कर रोज स्कूल से छुट्टी होते ही
सीधे महासभा भवन पहुंचकर पच्चीस बोल आदि कंठस्थ करने का नियमित क्रम बन गया। दूसरी
और लिलवा में ज्ञानशाला का भी वो अब नियमित ज्ञानार्थी बन गया था। सन 1997 आचार्य श्री
महाप्रज्ञ जी का गंगाशहर चातुर्मास, पहली बार संजय ने अपने परिवार के साथ गुरु दर्शन किये।
मुनिश्री मुनीसुव्रत ने गुरुदेव से परिवार का परिचय करवाते हुए कहा - संजय दीक्षा
लेना चाहता है। महाप्रज्ञ प्रवर - ठीक है ! अभी एक साल अध्ययन करो फिर सोचेंगे।
गंगा शहर से देवरिया (मेवाड़) के लिए प्रस्थान किया। मुनि श्री भूपेंद्र कुमार जी
के साथ नाना जी महाराज मुनि श्री मंगलरूचि जी प्रवास कर रहे थे। उनकी उपासना कि, उन्हें जानकारी
मिली की उन्हें जानकारी मिली की दीक्षा लेने की इच्छा है उन्होंने पांच दिन की
सेवा में प्रेरणा की बरसात उड़ेल दी। नोखा मर्यादा महोत्सव के बाद पूज्यप्रवर का
सरदारशहर चातुर्मास निर्वित था। विमला देवी ने अपने सुपुत्र से कहा : तुम दीक्षा
लोगे तो मैं अकेली रह कर क्या करूंगी। कुछ समय के बाद उन्हें पारमार्थिक शिक्षण
संस्था में अध्ययन के लिए लाडनूं भेज दिया गया। सरदारशहर चातुर्मास प्रवास शुरू
हुआ। लूणिया बाड़ी जिसमें संजय और उनका परिवार रहता था। उसके मालिक चंदन मल जी के
सुपुत्र राजकुमार जी व उनकी धर्मपत्नी श्रीमती राजकुमारी लूणिया ने संजय की बहन के
विवाह में कन्यादान किया था तो दोनों परिवार में संबंध और गहरे हो गए थे। राजकुमार
जी चाहते थे कि संजय और विमला देवी की दीक्षा उनकी भूमि सरदारशहर में हो। राजकुमार
जी चातुर्मास के शुभारंभ के साथ ही सरदारशहर पहुंच गए उन्होंने श्री महाप्रज्ञ जी
से दीक्षा के संदर्भ में निवेदन किया, साथ ही अर्क कि संजय इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढ़ रहा
है, कोलकाता
से सरदारशहर आने में 3 दिन और
जाने के 3 दिन।
फिर गुरुदेव उन्हें यहां रोके - और फिर दीक्षा ना हो तो पढ़ाई बिगड़ जाएगी। इस पर
महाप्रज्ञ जी ने फरमाया : उस पढ़ाई की कोई जरूरत नहीं है। गुरु के मुखारविंद से
शब्द क्या मुखुर हुए : उसी दिन संजय की कोलकाता से सरदारशहर के लिये टिकट कट गई।
संजय ने गधैया की हवेली में गुरुवर्य के दर्शन किये, उनका परिचय
करवाया गया : और गुरुवर्य ने बिना किसी औपचारिकता के मुनि रजनीश कुमार जी के पास
प्रतिक्रमण सीखने का आदेश प्रदान कर दिया। विकास महोत्सव पर ग्यारह दीक्षा की
घोषणा हुई उनमें से मां बेटी की दीक्षा सुर्खियों में रही।
दीक्षा : मुनि श्री संबोध कुमार जी ने 15 साल की अविवाहित
वह (नाबालिग) में कार्तिक शुक्ला एकादशी, 31 अक्टूबर 1998 को आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी द्वारा सरदार शहर में
जैन भगवती दीक्षा स्वीकार की।
सान्निध्य : दीक्षित होने के
1 वर्ष के बाद
मुनि श्री सुमेरमल जी "सुमन" सहअग्रगामी मुनि श्री सुरेश कुमार जी के
अनन्य सहयोगी।
यात्रा : हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश।
शिक्षा : दशवैकालिक, उत्तराध्ययन के कई
अध्ययन, आलंबन
सूत्र, शांत
सुधारस, भक्तामर, कर्तव्य
षटत्रिंशिका, संस्कृत
हिंदी चौबीसी, जैन तत्व
प्रवेश, पच्चीस
बोल, कालूतत्व
शतक, अष्टकम
चतुष्टकम, तेरापंथ
प्रबोध, व्यवहार
बोध, आचार बोध, संस्कार बोध आदि
कंठस्थ। जैन विश्व भारती विश्व विद्यालय से बी.पी.पी परीक्षा उल्लेखनीय प्रतिष्ठित
अंक प्राप्त।
साहित्य : Discover Life (अंग्रेजी भाषा में) जैन विश्व
भारती द्वारा प्रकाशित, मुनि
श्री सुमेरमल जी "सुमन" की जीवन गाथा उजली चादर, उजला जीवन के
संपादक। 1000 से अधिक
गीत, राष्ट्रीय
पत्र-पत्रिकाओं में आलेख प्रकाशन, 100 से भी अधिक कविता का सृजन, समसामयिक विषयों पर शब्द चित्र व परिसंवाद
का निर्माण। अ.भा.ते.यु.प द्वारा प्रकाशित युवा दृष्टि आचार्य प्रकाशित युवा
दृष्टि व् आचार्य तुलसी शताब्दी वर्ष पर प्रकाशित विशेषांक - अर्पण के संपादन व
प्रकाशन में विशेष निर्देशन।
विशेष : जैन आगम में मैनेजमेंट पर साहित्य
यात्रा, 25 बोल पर
द्वारा बनाये गये Mobile
App पच्चीस बोल Graduate की Designing में उल्लेखनीय
निर्देशन। देश के सबसे वृहद महाकुंभ सिंहस्थ में डेढ़ माह के कैंप में अणुव्रत की
अनुगूंज में उल्लेखनीय सहभागिता। राजस्थान की राजधानी जयपुर में राष्ट्रीय संत
मुनि श्री तरुण सागर जी श्री, महोपाध्याय
ललितप्रभ सागर जी, चंद्रप्रभ
सागर आदि जैन परंपरा के महनीय साधु साध्वियों के साथ विशेष मैत्री दिवस पर प्रभावी
भाषण व संघ प्रभावक उपस्थिति। लेखक, कवि, संगीतकार, मंच संचालक, कुशल वक्ता, राष्ट्रीय संगोष्ठियों में विशेष आमंत्रण, पत्रकार सम्मेलन
में विशेष उद्बोधन। प्रेक्षा ध्यान जीवन विज्ञान के सैकड़ों के कार्यशाला व्
शिविरों का संचालन। हजार से भी अधिक विद्यालयों में साइंस ऑफ लिविंग कार्यक्रमों
में ह्रदय स्पर्शी संबोधन।
साधना : प्रतिवर्ष 4 सवा लाख जप, नवरात्र पर विशेष
मौन व मंत्र अनुष्ठान।
तप : प्रतिवर्ष 4 नवरात्रा पर अन्न
परिहार, 2015 से
प्रतिदिन नवकारसी, एकांतर
तप - 2 माह : 5, 1 माह : 4, तेला - एक, बेला - 1,
उपवास एकसन हजारों।



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