
चाय.... यानी Tea.... India की सबसे Favourite और पसंद की जाने वाली Drink.... हर एक मौके पर, Occasion कोइ भी हो - चाय के बिना..... सब कुछ अधूरा.... 365 Days Labour से Cooperator तक की पहली पसंद। सुबह की शुरुआत हो या रात की आखरी Good Night Wish.... चाय तो बनती है। किसी के लिये एक लत, किसी के लिये शौक और किसी के लिये महमानों को Company देने की मजबुरी। खैर मेरे लिये कोइ ओर ही मायना था। बचपन से अपने हाथों की ज्यादा शक्कर, ज्यादा दूध, कम पानी और कम चायपत्ती की चाय बनाकर पीना मेरी Favorite Hobby थी। दिलचस्प ये था कि मेरे हाथ से बनी चाय की सौंधी सी महक का चस्का सिर्फ मेरी Family को ही नहीं.... Friend Circle को भी लग गया था। ये पता नहीं था कि मुनि होने के बाद भी दो टाइम चाय भी मिलती है। मगर Condition Applied था... एक Time पिये... तो Its Ok, मगर दोपहर को भी चाय पिये तो Tax Pay करो.... एक मुनि के लिये चाय पीने पर Tax.... सुनने में अजीब है But हां जरूरी है.... वरना धीरे धीरे कब वो जरूरत लत बन जाये और Out of Control हो जाये.... शरीर तो इंसानो का ही है ना.... तो शिकंजा कसा रहना चाहिये.... Tax क्या था - बस कुछ उसके ऐवज में छोड़ देना था। Jainism की Language में त्याग करना था.... मगर सवाल अब भी यही है कि मैंने चाय को बाय क्यों कहा ? एक बात तो मेरी किस्मत ने मुझे बड़ी शिद्दत से Gift दी है - कि कोइ भी चीज़ मेरी कमज़ोरी नहीं बन पाई..... एसा कभी नहीं हुआ कि मैं एक एसे Zone में चला जाऊं की कहने लगु की " मेरा इसके बिना Survival Possible नहीं है "
मेरे सृजनहार मुनि श्री सुरेश कुमार जी ने अपने जीवन के सफर में कभी चाय की महक तक महसूस नहीं कि। फिर मैं कैसे पी लेता ?? सोचा था नहीं पीना जब मेरे Leader ने Taste नहीं किया। मगर मुनि श्री सुमेरमल जी "सुमन" उन्हें कैसे Confess करता.... डर... । पीने की हां करु तो मुनि श्री सुरेश कुमार जी नाराज और ना करु तो मुनि श्री सुमेरमल जी नाराज। बड़े पेशोपेश में उलझ कर रह गया था। Finally मुनि श्री "सुमन" को हौंसला करके Announce कर दिया कि आप मुनि श्री सुरेश कुमार जी को Confess कर दे - मैं Ready हु। न जाने उनके चेहरे पर क्यों एक मुस्कान फैलती गयी.... बड़े प्यार से अपने हिस्से में से रोज सुबह मुझे चाय पिला दिया करते थे। चाय Expectation से कम होती थी.... मगर वो स्नेह और प्यार जब उस चाय में उड़ेल दिया जाता तो... एसा लगता मानों वो एक एक चुस्कियों के साथ अमृत ही घुल गया हो। 2 साल.... उन दो सालों में 16 साल की ममता मिल गई.... और उस दिन वो मुझे छोड़कर सदा के लिये किसी और दुनिया की सैर पर निकल पड़े... जाने कहा... मगर मेरी पहुंच से दूर... बहुत दूर.... आज जब चाय की चुस्कियों में Company देने वाले ही ना थे.... कोइ कहने वाले ना थे कि मेरे साथ तुम भी पी लो.... बस छोड़ दिया.... हमेशा हमेशा के लिये.... कह दिया अलविदा - सदा सदा के लिये। उनके साथ ही चली गई.... उनकी पसंद की हर चीजें जो मेरे बेहद करीब थी... बस एसे कहा - मैंने चाय को बाय !
Great
ReplyDelete