ये वो सुनामी थी जिसके मचलने पर मुस्कुराया हिंदुस्तान
सियासतों की बिसात बिछी : चुनावी अखाड़ों से दंगल हुए, समर तो वही जीतता है जिसने दिलो को जीता है। 23 मइ के परिणामों ने सिर्फ चौकाया नहीं बल्कि हिंदुस्तान के सर पर उम्मीदों का सेहरा बांध दिया। कश्मीर की जिरह हो, या आतंकवादी हमलों की बहस, राम मंदिर का मुद्दा हो, या गरीबी में किलसती आवाम पर वार्ता की सरगर्मी... बेरोजगारी पर उठते सवाल हो या बलात्कारियों से शर्मसार होती इंसानियत से चरमराता विश्वास। फिर लगने लगा है हिंदुस्तान का सब कुछ ठीक हो जायेगा। फिर रियायत मिली है सवा करोड़ की आबादी को करप्शन से आज़ाद आसमान के तले सांस लेने का अपना हक अपने हिस्से में आयेगा.... पांच साल तक जो मन की बात कहने रहे... अपना दर्द अपनी पीड़ा बयान करते रहे.... मुल्क के हालात गाहे - बगाहे बदलते रहे... देश ने फिर उन्ही फौलादी हाथों में फिर से सौप दी ये सोचकर कि पांच साल में जो भी बदलना बाकी रहा - वो अब हर कीमत पर बदलेगा।
ये चुनाव नहीं थे... ये वो सुनामी थी जिसके मचलने पर समुचा पर मुस्कुराया.... कौन कितनी सीटे लाया... किसे कहा शिकस्त मिली... ये प्रश्न कहि हाशिये पर जा गिरे है... अब सुर्खियों में सिर्फ और सिर्फ विकास है, अठारह करोड़ युवाओं ने अपना पहला मतदान उसे सौंपा जो समझते गए.... जो जानते है... जिन्होंने परखा है... जो खुद अठारह घण्टे देश के लिये जागते है.... समय से 5 मिनट पहले दफ्तर पहुंच जाते है... जिन्होंने अपने भाइ-भाभी, मामा-मामी, काका-काकी को प्रधानमंत्री होने का फायदा नहीं पहुंचाया। जो अस्सी करोड़ युवाओं में देश के भविष्य के सपने बुनते है। वो जो देश की सुरक्षा चक्रव्यूह में सेंध लगने की सारी साजिशों को सिरे से चकनाचूर करने की कुव्वत रखते है।
नोटबन्दी और जी.एस.टी से तंगी बिछी तो क्या हुआ... वतन को तस्सली थी कि राम-महावीर-बुद्ध-नानक की नैतिकता, ईमानदारी, प्रमाणिकता, निष्ठा के उपदेश जो अब तक किसी अंधेरी सुरंग में गुमशुदा थे उन्हें फिर आवाज़ मिल रही है, गलत रास्तों से घुसपैठ करती इकोनॉमी के लिये दरवाजे बंद हो रहे है, काला धन स्विस बैंक तक पहुंच रहे अपार दौलत को हिंदुस्तान की सरहद लांघने की भी इजाजत नहीं है....
ये भारत को सबसे शक्तिशाली देश बनाने, फिर से विश्व गुरु का दर्जा देने... इसने सांस्कृतिक मूल्यों को पुनः प्रतिष्ठित करने की जिद्द की जीत है, पुरी दुनिया से भारत के रिश्ते मखमली और मीठे बनाने की जद्दोजहद की सफलता है। यह आर्यभट्ट के शुन्य की खोज करने वाला भारत है। यह 2 करोड़ सन्यासियों, महात्माओं, मुनियों और साध्वियों का आर्य वर्ष है। यह त्योहारों का मुल्क है जहां जीवन का पर्याय ही उत्सव है, इस देश की माटी को वरदान है " यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानि भवतु भारतः "..... तो फिर से मादरे वतन "शान्तं तुष्ट पवित्रंच शानन्दमिति तत्वतः जीवन जीवनम प्राहु " भारतीय संस्कृति का राग अलापने को मचल रहा है... अब पहलू..... भाजपा... कमल... राष्ट्रीय सेवक संघ की नहीं... सुबह घर से निकलकर शाम को सही सलामत चेहरे पर खुशी ओढ़े वापिस लौटने की उम्मीद की है... एक उम्मीद जो मेक इन इंडिया का तिलिस्म पैदा करें.... एक आशा.... जो अच्छे दिन आने वाले है... के इंतजार को इतिश्री करें... एक विश्वास जो क्लीन इंडिया-ग्रीन इंडिया के ख्वाब को सच करें... एक यकीन जो पढ़ेगा इंडिया... तो बढ़ेगा इंडिया को फाइलों से उतार कर जमीन पर ले आये... एक भरोसा जो Digital India के बहाने कोना-कोना जोड़कर अखंड भारत की घोषणा को सिद्ध करें।
हिंदुस्तान की आवाम बखुबी जानती है कि आजादी के बाद से जाने-अनजाने, गाहे बगाहे, जो गुस्ताखियां... जो गलतियां हुइ है... उन्हें सुधारने के लिये पांच साल नाकाफी है.... इसीलिये... बाहे फैलाये फिर से पांच साल की बागडोर सौंप दी "नमो" सरकार को... अब जिम्मेदारी है "नरेंद्र दामोदर दास मोदी" सरकार की.... जो विश्वास सवा करोड़ हिंदुस्तानियों ने जताया है.... उस विश्वास को जीतने का कोइ भी मौका अपने हाथों से फिसलने ना दे।
अब ना किसी को अपने विजेता होने का घमंड हो, ना किसी को हारने की हताशा... न अपनी तारीफों में कसीदे पढ़े... ना औरो की छींटाकशी हो... बस देश के लिये कुछ कदम उठे... खुशियां पिरोने वाले कदम, रात को चैन से बिना नींद की गोली सोने वाले कदम, मानवीय एकता बोने वाले कदम.... राम तेरी गंगा मैली हो गइ के मैल धोने वाले कदम....
इस कमिटमेंट के साथ कि....
पीर पर्वत हो चली, अब तो पिघलनी चाहिये,
इस हिमालय से कोइ गंगा, निकलनी चाहिये,
तेरे सीने में नहीं तो, मेरे सीने में ही सही,
हो कही भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिये।।


Comments
Post a Comment