Trust is a Fragile Thing........


भरोसा... यकीन.... विश्वास.... Trust... जाने किन पहलू में इन शब्दों का Birth हुआ होगा। मगर हा जिस किसी पर हो जाये सबकुछ न्योछावर करने को राजी हो जाता है मन, तब ना If - ना But... न What - न Why.... बस एक बात रोम-रोम में रम जाती है वो मेरे साथ धोका नहीं करेगा। और अगर कही उस भरोसे की दीवार में जरा सी दरार आ जाये तो जिंदगी भर की जद्दोजहद के बाद भी उस दरार को सांधना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। 
 
 

 
स्टेशन पर ट्रेन के इंतजार में खड़े खड़े पैर थककर चूर हो गये थे.... और मन ने स्वीकार कर लिया था की लोकल ट्रेन मतलब आधा घण्टा - एक घण्टा तो Con firmly लेट। न जाने क्या बात हो गयी थी - टारजू के मम्मी पापा स्टेशन पर एक दूसरे पर जुबानी तीखे बाणों से हमला करने लगे, बात होती होती जब शोर में, और जब शोर चिल्लाहट में बदलने लगी तो टारजू को कुछ भी समझ नहीं आया.... उसे पता नहीं था Mistake किसकी थी, Guilty कौन था, मगर पापा की आवाज़ मम्मी के शोर पर भारी पड़ रही थी.... तो दिमाग ने कहा - पापा Wrong है.... तब तक मम्मी के गालों पर दो-तीन तमाचे पड़ चुके थे। और मम्मी सुबकने लगी.... आसपास भीड़ कुछ इस तरह उमड़ चुकी थी... मानों कोइ मदारी का खेल शुरू हो गया था। टारजू कभी भीड़ को देखता तो कभी मम्मी-पापा को.... पांच साल के बच्चे की इससे ज्यादा हैसियत ही क्या होती है कि किसी Conclusion तक पहुंचे। उसने Finally उसने Decide किया कि अपने मखमली हाथों से दो तीन घुसे पापा के पेट पे मारकर मम्मी के गाल पर पड़े - तमाचे का बदला लेगा। और उसने जो सोचा उसे Apply कर दिया... अपनी नन्ही नन्ही उंगलियों को बांधकर मुट्ठी बनाई और पापा के पेट पर दो तीन घुसे जड़ दिये...  आखरी घुसा शायद थोड़ा तेज वार कर गया.... अचानक पापा ने सिसकी भरी तो पता चला कि मुक्का जरा सा तेज पड़ा। पापा संभले इससे पहले मम्मी की उंगली पकड़कर टारजू भीड़ को चीरते हुए कुछ ही पलों में स्टेशन से तीन दो पांच हो गया... ना माँ बेटे ने पिछे मुड़कर देखा और ना पापा की आंखों ने धुंधा और न रोकने की कोशिश की। अब सब कुछ मुकद्दर के भरोसे था जो होगा देखा जायेगा। उसी दिन से टारजू के मम्मी और पापा के रास्ते अलग हो गये.... फिर उसने कभी अपने घर के इर्द गिर्द पापा तो क्या उनकी परछाई भी नहीं देखी। अब टारजू सोच रहा था.... काश स्टेशन पर उस दिन मम्मी और पापा के बीच समझौते का सेतु बन पाता। मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी.....Trust टूटकर ना जाने कितने टुकड़ो में बदलकर रह गया था.... कहा नहीं जा सकता... आज उसने अपने Dad को ही नहीं खोया.... Relation से अपना Trust भी.... अपना यकीन भी सदा सदा के लिये खो दिया।
 
 

किसी पर यकीन का टूटना उस हादसे की तरह होता है जिसके बाद जिंदा रहने की संभावनाओं पर एक Interrogative Mark लग जाता है। कोइ दिक्कत नहीं है इस बात से की आप ज्यादा लोगो के करीब नहीं जा पाये.... मगर जिन लोगो से जुड़े उनका भरोसा ना टूटने दे। एक भरोसा ही तो है जो बात बात पर हर सफर में किसी के साथ होने का अहसास दिलाता है।
 
 


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