एसे शुरू हुआ साहित्य का सफर.....

 
 
मुझे Genes में कलमकार होने का गुरुर नहीं मिला..... हां प्रेरणाओं ने मुझे बनाया, English और Bengali से वास्ता रहा था मेरा.... हिंदी आमतौर पर बोली जाने वाली भाषा थी, मगर कोइ कहे हिंदी में लिखना है.... बस पुछो मत.... जैसे सरदर्द होने लग गया है। मगर अब तो हिंदी सुबह के नाश्ते, दोपहर और शाम के भोजन जैसे जरूरी हो गया था। कहना.... सुनना... लिखना.... सब हिंदी में.... सोचा ना था.... कभी साहित्य की यात्रा... पर निकल पडूंगा.... भगवान महावीर की 2600वीं जन्म जयंति का विराट अवसर था.... देश भर में बड़े फैसले, बड़े कार्यक्रम होने को थे.... कुछ किताबों से गुजरते हुए भगवान महावीर को समझ रहा था.... और अचानक मन की धरती पर एक विचार की फसल उग आइ... मुझे भी लिखना चाहिये.... मगर क्या ?? जब तक हम पढाकू नहीं होते तब तक कुछ भी लिखने की कुव्वत नहीं आती। मैंने मेरे मन की उठी इस जरा सी चिंगारी को डरते-सहमते... मुनि श्री सुमेरमल जी "सुमन" के चरणों में अर्पित कर दिया। और Cross Finger करते हुए इंतजार करने लगा.... कि बस जो सोचा है वो वैसा ही हो जाये, मुनि श्री मुझे " अहा सुहं देवानुप्रिय " का आशीर्वाद दे। आंखे बंद.... बदन में अजीब सी सिरहन.... विचारों की एक बेतहाशा दौड़.... कभी Positive... कभी Negative... अगर NO कह दिया तो.... कुछ 20-30 Seconds के बाद उन्होंने अपनी चुप्पी तोड़ी... ठीक है लिखो.... मगर सारा का सारा वक्त इसी में खर्च मत कर देना.... हमारे और भी मकसद है जिन्हें हमें पुरे करने होते है - मेरी खुशी उस पल कमोवेश ऐसी थी कि जैसे कोइ Jackpot ही मिल गया हो.... और मैंने एक कोरे कागज पर " महावीर और अहिंसा " कुछ दो दिनों की जद्दोजहद के बाद Finally लिख ही दिया। और लिखते ही पहुंच गया मुनि श्री के पास चेक करवाने... यकीन था कि झिड़कियां मिलेगी... क्या लिखा है ? एसे कोइ लिखता है क्या ? मगर मुनि श्री के Face के Expression रोम रोम को रोमांचित कर रहे थे.... पुरा का पुरा पढ़ लेने के बाद... मुनि श्री ने अपने मखमली हाथ सर पर रखा.... और कुछ यूं React किया... वाह !!  क्या बात है... पहली बार में इतना सुंदर लेख... आगे बढ़ो... और आगे बढ़ो... फिर क्या था.... मैं आगे बढ़ता ही गया... और साहित्यकारों की फेहरिश्त में शामिल हो गया.... हां वो लेख युवादृष्टि में Publish हुआ... गिनती तो नहीं... मगर बहुत तारीफे मिली.... बस यही से शुरू हुइ मेरी साहित्य की यात्रा.... I Found An Author Within....

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