तकलीफों के आने का कोइ टाइम Fix होता है ना खुशियों के दस्तक देने का....
जीवन एसा ही है, ना तकलीफों के आने का कोइ टाइम Fix होता है ना खुशियों के दस्तक देने का। ये बात मुझे उस दिन समझ में आइ.... अपाढ़ा माड़वाड़ बाड़मेर जिले का एक कस्बा...... चातुर्मास प्रवास चल रहा था.... पर्युषण पर्व के लिये प्रवास स्थल से कोइ 100 मिटर दूरी पर Venue Final किया गया.... व्यवस्थापकों को ज्यादा भीड़ होने का शायद भरोसा था.... बड़ा पंडाल.... खचाखच भरा था, हां वो समवत्सरी महापर्व का दिन था.... जैन धर्म का सबसे बड़ा आध्यात्मिक पर्व.... निर्जला उपवास.... जैनिज़्म की भाषा में चौविहार उपवास। सब कुछ Traditional है। मुनि हो चाहे श्रावक.... सभी के उपवास... Daily Routine से आज डेढ़ घण्टे पहले यानी 7:30 बजे प्रवचन शुरू हो गया.... अब लगभग... तीन साढ़े तीन बजे तक चलेगा..... प्रवचन क्या.... भगवान महावीर की साधना से मोक्ष की यायावरी और उसके बाद परंपराये मोड़ लेते हुए इक्कीसवीं सदी तक कैसे पहुंची.... इसी ताने बाने को बुनती इतिहास की एक एक कड़ी को छूते हुए श्रोताओं के धैर्य की सीमा तक अखंड प्रवचन देना था.... प्रवचनकार सिर्फ दो... मैं और मेरे गॉडफादर... मुनि श्री सुरेशकुमार जी और मैं आगाज़ मैंने कर दिया था। साढ़े सात से साढ़े नौ तक लगभग दो घण्टे... भीड़ धीरे धीरे बढ़ने लगी थी.... मुनि श्री पांडाल में प्रवेश कर चुके थे.... और एक खुबसूरत से गीत के साथ अपना प्रवचन शुरू कर दिया था.... जो लगभग चार घण्टे तक चलने वाला था। तो मैं जरा सी देर रेस्ट करने के मकसद से प्रवास स्थल पर आ गया.... सुरज आग बरसा रहा था - हवा का एक झोंका भी पिछले 5 छह घण्टो में बदन को छूकर नहीं गया। हॉल में उमस कोने कोने तक पसर चुकी थी.... मन में एक ख्याल कौंधा क्यों ना Underground में जाकर थोड़ा ध्यान और थोड़ा Rest कर लिया जाये। सोचते सोचते मैं Underground में पहुंच गया। Rest और ध्यान में से पहले 20 मिनट Rest चुना... उपरी मंजिल के वनिस्पत यहां ठंडक ज्यादा थी और अंधेरा भी - सफाइ तो Daily होती थी - तो मैं बिंदास 20 मिनट बाद उठना है का संकल्प लिये हुए शवासन में लेट गया। मुश्किल से पांच मिनट ही बीते होंगे... शायद वो मेरे आने का ही इंतजार कर रहा होगा। तो आधी अधुरी नींद में ही मुझे कांट लिया.... वो क्या था ये देख भी पाता उतनी रोशनी का सुराख भी नहीं था, मैं ना चीख पा रहा था - ना सिसकियां भर पा रहा था - वहां मेरी आवाज़ सुनने के लिये कोइ नहीं था, सब प्रवचन में थे। मैं दर्द से कराहता हुआ हाथ में चिपक चुके उसे अंधेरे में हथेली में पकड़कर खुद से अलग किया और पंद्रह सीढ़िया तय करते हुए हॉल में पहुंचा.... राह चलते किसी मुसाफिर को मुनि श्री तक Message पहुंचाने का कहते ही मैं गश खाकर गिर पड़ा - शायद जहर फैल रहा था तिस पर रूह झुलसती गर्मी। होश आया तब तक मुनि श्री और श्रावक श्राविकाओं की भीड़ मुझे घेर चुकी थी। घड़ी में कितने बजे थे ये नहीं पता मगर दोपहर की धुप भवन के जिस दीवार को छू रही थी उससे अंदाजा हो गया कि अभी तक डेढ़ ही बजे है और मेरे प्रवचन का Turn आने वाला है, मगर तब तक प्रवचन संपन्न कर चुके थे मुनि श्री ये नहीं पता चला। इतनी सी सुगबुगाहट जरूर सुनाई दी कि कनखजूरे ने काट लिया.... कोइ था मंत्र से झाड़ा दे रहा था.... शरीर में गर्मी एक एक बीतते पलों के साथ बढ़ रही थी। मैं बिना पानी की मछली जैसे छटपटा रहा था। श्रावकों ने गर्मी से राहत के लिये और डरते हुए कि मुझे कुछ हो ना जाये - क्योंकि आज चिकित्सा भी नहीं हो सकती थी। तो Cooler लगा दिया था। यही कोइ शाम की पांच बजी तब कही जाकर मैं उठा और अब जरा सा आराम महसूस होने लगा। कुछ ही देर में तो एसा हुआ जैसे कोइ हुआ ही ना हो। सबकी सांसों में सांस जैसे फिर आने लगी थी। मैं फिर से जी उठा था।
प्रेरणा : 1. एक छोटा सा कनखजूरा कितनी बड़ी Tragedy पैदा कर सकता है।
2. आप लोगो की दुआओं से बहुत जल्दी मुश्किलों से बाहर आ जाते है।



अनुभवो से हमेशा प्रेरणा मिलती है।
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