ANGELS ARE OFTEN DISGUISED AS DAUGHTERS !!
बेटियां हर घर का धन...
मधु जीना चाहती थी... उड़ना चाहती थी, जिंदगी को एक मकसद देना चाहती थी। लड़कियों की चुला चौंकी में खुदको झोंकना उसे गवारा नहीं था। उसे वह सब कुछ करना था जिसके लिये यह गलतफहमी पूरी दुनिया में फैलाइ जाती रही है कि " Girls can't do this "। वो इस complex से बाहर जाकर पूरी कायनात को Prove करना चाहती थी की बेटियां अगर ठान ले तो बेटों की भी जगह ले सकती है। मगर लाख चाहकर भी वो दुनिया के दस्तूर को ना बदल सकी। अपने पंखो को खोल ना सकी। जब भी उसने अपने उड़ान भरने का इरादा जताया - कभी मम्मी ने, कभी पापा ने, कभी परिवार ने, कभी समाज ने उसके हर एक सपने की और गुजरने वाले रास्तों के दरवाजे हमेशा हमेशा के लिये बंद कर दिये। उसने जुबान खोली तो बदन पर दर्द और होठों पर चीखे मिली। और फिर भी उसने हार नहीं मानी। वो तैराक बनना चाहती थी, Swimming सीखना चाहती थी, मगर एसा किसी ने होने नहीं दिया। उसने plan बनाया की अब वो अपने Dream को तब साकार करेगी जब कुछ घण्टो के लिये घर पर कोइ नहीं होगा। इकलौते भाई का जिसे वो प्यार से गुड्डू पुकारा करती थी, हर मोड़ पर बहन को Full Flash Support मिलता था। अब जब कोइ घर पर नहीं होते तो वो Swimming सीखने करीबी तालाब में चली जाया करती थी। वो 3rd Term था, जब तक हाथ पांव मारती रही.... जीत अभी बहुत दूर थी। आज उसका हौंसला सातवें आसमान पर था, साहस की डोर थामे वो तालाब के Mid Point पर पहुंच गयी। न जाने क्या हुआ... उसके मखमली पांव तालाब की चिकनी मिट्टी से फिसल गये... और मधु धीरे-धीरे उस मिट्टी में धंसती ही चली गइ... किनारे पर बैठे भाइ की आँखों से अचानक उसका चेहरा नदारद हो गया। गुड्डू सहम गया। उम्र के लिहाज से जो उसे उस वक्त सूजा वो यह था कि तालाब से जुड़े सड़क पर चल रहे राहगीर को और अपने मकान के Owner को तेज रफ्तार से दौड़कर बुलाकर ले आया। कुछ ही देर में एक बड़ा हुजूम उमड़ पड़ा, तलाब के किनारे 2-3 लोग तब तक तालाब के अंदर जा चुके थे। तीन घण्टे की मशक्कत के बाद नीले पड़ चुके मधु के लाश मानिंद शरीर को तलाश कर बाहर लाने में सफलता मिल ही गयी।
बड़ी देर सीने में बार बार Pumping के बाद शरीर में भर चुके पानी को निकाला गया.... तब तक सबकी उम्मीदे टूट चुकी थी, ढाइ घण्टे पानी में डूबे रहने के बाद कोइ जिंदा रह जाये - It's next to Impossible... कही मंदिरों में प्रार्थना शुरू हो गयी, तो कोइ प्रसाद चढ़ाकर उसकी जिंदगी की मन्नत मांगने लगे। किनारे पर खड़ा हर कोइ उसके लिये अपने अपने भगवान से दुआ मांगने में मशगूल हो गये। कुछ खुली आंखो ने अचानक मधु के शरीर में हुइ ज़रा सी हरकत से ख़ुशी के मारे चिल्ला उठे। दुआएं, प्रार्थनाएं, मन्नते, असर दिखाने लगी और मधु मौत को छूकर फिर जिंदगी के शहर में लौट आइ। मौत को जीत लिया था उसने... क्योंकि अनगिनत दुआएं उसके साथ थी और उसकी हिम्मत जो उसके ना हारने की वजह थी। बेटियां कभी कमजोर नहीं होती। वो चाहे जिस रूप में हो हमेशा हिम्मत को अपना हथियार बना लेती है, वरना क्यूं कुदरत किसी बेटे से ज्यादा किसी बेटी के हिस्से में तकलीफें और दर्द उड़ेल कर उन्हें बर्दाश्त करने का साहस उसके जन्म के साथ ही उसे सौगात में देता है।
बेटियां किसी Fiction के उन Chapter की तरह होती है अगर book से Remove कर दिये जाये या Pages Tear कर दिये जाये तो Book अपनी ताज़गी, अपनी संजिंदगी, अपना वजुद, सब कुछ खो देता है। हां बेटियों को बेशक एक मोबाइल समझकर उसे Screen Guard और Cover से Security दे। इतना सब कुछ देने के बाद उसे अपने Incoming और Outgoing calls की In-dependency तो दे ताकि वो अपने कदम जमीन पर रखकर आसमान की बुलंदियों पर अपने सपनों को इंद्रधनुषी बनाने के लिये ऊंची उड़ान भरे। फिर कही कोइ मधु अपने मम्मी पापा के खिलाफ अपनी जीत के रास्ते तय नहीं करेगी। उसे भरोसा दिलाए की उसके हर सही कदम पर आप उसके साथ है। उसे अपना अच्छा बुरा सोचने का Decision लेना सिखाकर अपने Mom-Dad होने का फर्ज अदा करें। याद रखें बेटियां भी माँ-बाप का सर ऊंचा करती है अपने इरादों, अपने ख्वाबो, अपनी उड़ानो से।






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