ENOUGH !!
" संयम ख़लू जीवनम "
वक्त ने आर्या को एसा बना दिया था। बस वो कुछ पल के लिये भूलगई थी कि वो भी एक लड़की है, बस Mobile Phone की तरह जो Cover और Safety Guard के बिना अगर गिरा तो टूटकर चकनाचुर हो जायेगा, रोज वो एक Story देखती थी Daily Newspaper में, Facebook पर, इंस्टा पर.... कभी पांच साल की नन्ही हवस का शिकार बन जाती है तो कभी रक्षा बंधन निकली बहन की अस्मिता तार-तार कर दी जाती है। ये पढ़ते पढ़ते उसकी आंखों में खून तैर जाना, मुट्ठी खींच जानी, एक बेटी एक बहन होकर उसकी आंखें रोज किसी बेटी-किसी बहन की शर्मशार कहानियां जार-जार रोती.... उसकी बंद होकर कांपती मुट्ठी शायद यह कहना चाह रही हो " बस अब बहुत हो गया, अब किसी ने किसी बेटी की अस्मत लूटी तो कानुन सजा दे ना दे वो एसी सजा देगी की फिर जिंदगी भर एसी घिनोनी हरकत करने की हैसियत ही नहीं होगी। देखते ही देखते उसने बेटियों का एक Gang बना लिया। इस Gang का सिर्फ एक मकसद था - बेटियो को उनका वजुद देना - यह महसुस करवाना की बेटियां कभी लाचार नहीं होती। आर्या का यह जुनून उसे कितनो का दुश्मन बना देगा खुद उसे भी नहीं पता था।
हर गांव, हर कस्बे, हर शहर में सब Self Defense की Training Institute के जाल बिछ गये थे। जितनी तेजी से बेटियों के वजुद की हिफाज़त की तैयारियां हो रही थी उतनी ही रफ्तार से उसके खिलाफ रोज हमलों की साजिशें रची जा रही थी। ट्रेनिंग खत्म करके देर रात तक लौटते वक्त न जाने कितनी बार आर्या पर जानलेवा हमले हुए, ये किस्मत थी या कोइ था जो रोज उसे सांसे बख्श रहा था - जरा सी चोटो में सिमट जाता था सब कुछ, वरना मंजर तो एसे थे कि देखकर मौत भी कांप उठे। मगर कब तक... वो इंसानियत को मरते देख नहीं पा रही थी, और उसे सांस लेते हुए देखना उन्हें गवारा नहीं था। जिन्हें औरत को महज एक जिस्म समझकर उससे घिनोने खेल खेलना पसंद था। आज आर्या ने एक नहीं दो-दो फतेह हासिल की थी, जो गुर उसने सिखाये उन्ही की वजह से एक बेटी की अस्मिता तार-तार होने से बच गई। और दूसरी कई अर्सो की कानुनी लड़ाई के बाद आज Rapist के लिये मौत की सजा का फैसला आखिर अदालत ने दे ही दिया। आंखों ने खुशी से दो बूंदे ढलका दी थी धरती पर ।रेत में से जैसे धुएं का गुबार उठने लगा था। होंठो पर मुस्कुराहट बिखर गई। और एक बार आई तो फिर विदा नहीं हुई। न जाने कहा से एक गोली आकर उसके पुरे बदन भेद गई... खून किसी झरने सा बहता ही चला गया.... और आर्या औंधे मुंह गिर पड़ी.... धरती ने उसका माथा चुम लिया.... सुबह के अखबार की कवर पेज न्यूज़ थी " शहादत को सलाम " एक उम्मीद जो बंधी थी... वही अंधेरे में खोने लगी... देश को फिर एक आर्या के जन्म का इंतजार था... आर्या को हर सोच में जन्म लेने का इंतजार।
धर्मगुरुओं की भीड़, मंदिरो-मस्जिदों, गुरुद्वारों-गिरजाघरों के जाल के बीच भी अगर बेटियों की हिफाजत... उसकी आबरू की Security एक सवाल है - तो ऋषि मुनियों का देश ये तो नहीं था। कुछ और है जो इस वतन की जरूरत है, शायद संयम जो सुजलां सुफलाम मलयज शितलाम की धुन को रूहानी बनानी है। आत्मा-परमात्मा.... प्रभु, ईश्वर, God, खुदा, स्वर्ग, जन्नत सब मिल जायेंगे.... पहले इस कायनात को तो प्रभु का घर बना ले, आंखे हो या मन सीखा दे कोई उसे सिमरन " संयम ख़लू जीवनम का मंत्र "





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