बीतें हुए लम्हे.....

 
 
रोज अपने बीते हुए लम्हो के कैमरे में झांकता हूं.... देखता हूं बहुत बदल गया हूं - सिर्फ मैं ही नहीं मेरा नाम, मेरी पहचान, मेरी आदतें,  मेरा Status सब कुछ बदल गये। इतनी रफ्तार से तबादले तो सरकारी महकमे में भी नहीं होते। मैं कुछ भी नहीं था.... गलियों की आवारगी में गुजरते हुए अपने बचपन को कभी लड़खड़ाते, कभी बहकते, तो कभी चहकते देखा। खुद अपनी आंखों से.... रोज अपने आप से... जिनकी वजह से हु उनसे.... हर उस चीज से जिसे मैं चाहकर भी अपना नहीं बना पाया.... सबसे शिकायत थी.... अब शिकायत है कि कोइ शिकायत ही नहीं है। बाग-बगीचों से खट्टे-मीठे जामुन-फालसा तोड़कर दोस्तों के साथ Share करने का सुकून उस वक्त सिर्फ मैं महसुस कर सकता था, कभी पेड़ के मुहाने पर खुली खिड़की से पैरों की आहट सुनकर Owner की दस्तक होती तो बगीचे के सरहद पार तेज रफ्तार से दौड़कर जाते। एसा लगता जैसे Olympic में 500 Meter की दौड़ जीत ली हो। अब कौन परवाह करें कि पिछे अपने फलों के चोरी होने से कोइ चीख रहा है या गालियों की बौछारें दे रहा है, हाथों में लकड़ी थामे दौड़कर मारने आ रहा है या या Guardians को शिकायत कर रहा है, बस छोटी छोटी चीज़ो में खुशी ढूंढने की आदत हो गयी थी। मगर ये पता नहीं था कि उन खुशियों की कोइ Validity नहीं है, जब समझ में आया तो उस दुनिया से बहुत दूर आ चुका हूं। अब मन बार-बार, जार-जार होता है क्यों अपनी खुशी किसी की परेशानी में ढूंढता था, क्यों बिना मेहनत कीये कुछ चीजों को पाकर मिठास चखने की लत से बेबस हो गया था, क्यों इन हकीकतों में आने वाला कल और उसका भद्दा चेहरा मुझे दिखाइ नहीं देता था। 
 
 

जो राजी हुए.... उन छोटी छोटी उपलब्धियों से.... छोटी छोटी कामयाबियों से... वो ही छूट गये। मैं आगे बढ़ता गया और मेरे अतित के साथ मेरा बचकानापन... मेरी नादानियां भी मुझसे फासले बनाने लगी। तब कुछ करता था तो खुशियां सीने में धड़कती थी.... अब कुछ नहीं करता तो खुशी कुलांचे भरती है। बस इतने से फर्क का सफर तय किया है मैंने 3 युगों को पार करने के बाद। 
 
 
 

अभी तो कतरे भर जमीन मापी है.... अभी कदमों को और चलना है कितनी दूर नहीं जानता... पूरी दुनिया को अपने अंदर समेटने चला हु.... अब सारी दुरिया... सारे फासले मिटाने निकला हु..... अंधेरे निगलने चला हूं।

Comments