DAD : Dedicated And Devoted
जोखिमों से भरी जिंदगी रोज मौत को गले लगाकर आती थी। कहने को वो सिर्फ तमाशा था मगर खेल मौत का था, एक मौत का कुआँ होता था जिसमें वो गोल गोल अपनी बाइक कभी तेज तो कभी धीमी रफ्तार से घुमाकर तालियों की गड़गड़ाहट और पैसे बटोर लिया करता था। मौत से खेलना उसका Passion हो गया था। बस पैसा उसकी जरूरत थी.... सब कुछ वो इसलियें करता था। मौत के कुए से निकलता की आंखों पर पट्टी बांधकर नंगी तलवारों से खेलता। ये खेल खत्म हुआ तो पंद्रह मंजिल बिल्डिंग से बिना किसी सहारे कूदकर लोगो का मनोरंजन करता... और सब करते करते जब शाम ढल जाती तो करतब दिखाकर मिले पैसो को जेब को सौंपकर अपने छोटे से घर जिसमे वो उसकी अर्थांगिनी और दो नन्हे मुन्ने बच्चे रहते थे.... की ओर कूच कर जाता.... रास्ते में मिठाइ की दुकान से मिठाइ ले जाना नहीं भुलता। अपने बीवी बच्चों के लिये। उसकी अपनी जरूरतें कम थी... न सिगरेट-बीड़ी से लगाव था... न हुक्का-गांजा का चाव। बस बीवी बच्चों की खुशी में उसकी हर एक खुशी शामिल थी। अर्सो गुजर गये मौत का खेल दिखाकर लोगों का मनोरंजन करते-करते.... और एक दिन किस्मत ने दस्तक दी। उसे एक एक्शन थ्रिलर मूवी में Stunt करने का न्योता मिल गया... मायानगरी जहा रोज हजारों जैक चैक और आबरू देती है मगर फिर भी जगह नहीं मिलती आज उसे बिना किसी Audition के Film Industry की सबसे बड़ी फ़िल्म में Lead Role मिल गया। उस फिल्म में 500 करोड़ का Business किया फिर क्या था चल पड़ी उसकी.... फिल्म पर फिल्म साइन करता ही चला गया। सिलसिला यही नहीं रुका.... ब्रांडेड कम्पनियों ने उसे अपनी कम्पनी का Brand Ambassador भी बना दिया। झुग्गी झोपड़ीयों की मुफ़्लिशि भरी जिंदगी स्टारडम और Fantasy की शानोशौकत की देहरी भी लांघ गइ थी। Reel Life की शोहरत में Real Life को नहीं भुला.... कि उसने कहा से शुरू किया था।
दोनों बेटे-बेटी जवानी के आंगन पर कदम रख चुके थे। फिल्म Industry की Shooting के Dates के सिवा उसने कभी 7 Star Status वाली Life नहीं चुनी। वो और उसका परिवार.... न इससे आगे कुछ ना इससे पिछे कुछ। बेटी को पापा के एक Co-Star से प्यार हो गया.... उसने देहरी लांघ दी। लाड़ला बेटा अंग्रेजी मेम से इश्क़ फरमा बैठे। और पत्नी ड्राइवर के साथ भाग गयी..... इन सबके साथ Common ये था कि इन सभी के पास इनकी Life के Real Hero का एक बड़ा Cash Amount था.... जिसके सहारे तीनों की जिंदगी आरामतलबी से गुजर जाती। घर के Dinning Table पर तीन ग्लास के नीचे तीन खत थे.... और आंखों से गुजरते हुए वो अपना अपना सच बयान कर रहे थे।
Stunt Man इन खतों में अपनी गलतियां ढूंढ रहा था कि उसने एसी भी क्या खता की थी जिसकी सजा इतनी बड़ी उसे मिली।
जिन चूजों को परिंदे ने दाने-दाने मिलाकर परिंदे होने का वजूद दिया, पंख दिये, उड़ान दी। जिस पौधे को उसने पेड़ बनने तक परवरिश की, आज वो परिंदे किसी और दुनिया के लिये उड़ान भर चुके है, और उस दरख़्त ने उसे अपनी छांव देने से इंकार कर दिया।
कहानी कल्पना की यात्रा है.... Fictitious है.... मगर जिंदगी का वो कड़वा सच है जिसे शहर, महानगर, कस्बे, गांवो की जिंदगियां जीने को मजबूर है। माँ पर हजारों कवितायें, हजारों गीत, अनगिनत किताबे लिख दी गइ, परवरिश की यात्रा का अहम किरदार... पिता के किरदार को स्याही नहीं मिली। पिता हो भी है - जैसे भी है - बस पालनहार है।






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