लापरवाही
एक छोटी सी कोताही.... एक जरा सी लापरवाही कि अपने साथ औरो के भी नुकसान की वजह बन जाती है। ये बात उस दिन समझ में आइ जब मैं भी लापरवाही के इस रास्ते से गुजरा। मन को मुनि हुए बमुश्किल दस बारह दिन ही हुए थे। न विधि - विधानों का विद्वान था.... न परम्पराओं से वाकिफ था। कुछ वक्त देना था वक्त को.... सारी रीती-रिवाज समझ में आ जाने वाले थे। न मुझे उन्हें समझने में जल्दी थी.... न मेरे Guardian... मेरे रहबर... मेरे मार्गदर्शक.... इस मायने में जल्दबाजी में थे। वो जानते थे.... जिस महानगरीय Life Style को मैं जीकर आया हु.... अपनी Independency अपने तौर-तरीके.... और अब अचानक एक साथ सब कुछ Change हो जाये.... It's Next to Impossible.... तो थोड़ा Adjust हो जाये फिर सारे नियम-कानून.... हां और ना... सब कुछ समझा देंगे। जैन मुनि परिव्राजक होते है। जिंदगी भर की यायावरी.... चलो चलो... बस चलते रहो.... पहले दिन से आखरी दिन तक पदयात्री बनकर महंगी कारें... Buses... आपके इर्द गिर्द घूमेंगे.... मगर आप उनकी सवारी नहीं कर सकते। तो दीक्षा के पहले दिन से बारह दिन हो रहे थे.... शादी हो या दीक्षा.... कुछ दिनों.... कुछ महीनों तक संकोच.... शर्म.... हया.... आप पर अपना साया बनाये रखती है। वक्त गुजरता जाता है और फिर हम खुलने लगते है। सही-गलत, अच्छे-बुरे के बारे में बात करने लगते है वो सर्दी के दिन थे। इतनी ठिठुरन को सड़क पर चलते हुए जीने की आदत नहीं थी। आम जिंदगी में अलसुबह रजाइ-कंबल में दुबककर धूप के खिलने के इंतजार में सोये रहते थे.... नींद आये न आये। यहां तो सुरज के आसमान पर दस्तक के आह्वान के साथ ही अपना बोझ अपने कंधों पर उठाओ और बस फिर चल पड़ो किसी दूसरी मंजिल की तरफ... हरयाणा की सड़कें दांये बाएं सरसो के पीले पीले फूलों की बिछी बिसात के बीच तारकोली सड़क पर धुंध और ठंड की वजह से मुंह से निकलते धुओ के छल्लो के बीच सफेद कपड़ो में लिपटे मुनियों व् साध्वियों के साथ श्रद्धालुओं का लंबा काफिला। पुरे 3-4 Kilometer की काली कजरारी सड़क पर जिस तरफ देखो वही साधु-साध्वियां ही दिखाइ दे रहे थे। मैंने अपने मैंने अपने रहबर मुनि से कुछ युवा मुनियों के साथ आगे चलने की इजाजत मांगी और जैन मुनि के शब्दों में विहार कर दिया। कोइ सात आठ किलोमीटर चला तब याद आया जहा से चले थे उसी स्कूल के Room में मेरा Eye Glass रह गया था... नियम का हवाला दु... तो जैन मुनि की छूटी हुइ चीज़ कोइ Devotee न पैदल जाकर न गाड़ी से वापस लाकर दे सकता है। पांच किलोमीटर अभी भी चलना बाकी है, Already बारह किलोमीटर की यायावरी थी... और अब अगर वापस जाता हूं तो पूरे छब्बीस किलोमीटर की यात्रा हो जाती, क्या करु क्या न करु ये सोचकर मैंने अपनी परेशानी साथ कदमताल कर रहे एक मुनि से Share की.... वो ये सुनते ही वही के वही ठिठक गये... और अवाक होकर सिर्फ इतना कह पाये - अब ? कुछ ही मिनटों में मेरे Guardian Muni... Muni श्री बालचंद ने मुझे देखा तो मेरे चेहरे से पसीना टपकने लगा.... अब खतरनाक डांट पड़ेगी... मैंने बड़ी मासुमियत से उन्हें सब कुछ बता दिया... वो मुस्कुराये... शायद वे इस बात से प्रभावित थे कि मैंने सच कहने का साहस किया। दुनिया उन्हें कोतवाल मुनि श्री बालचन्द जी कहकर पुकारती थी। दुनिया के लिये बहुत Strict मगर आज मेरी इतनी बड़ी Mistake के लिये मुझे न झिड़की दी.... न आंखे तरेरी, बस सर को सहलाते हुए इतना सा कहा - सावधानी रखनी चाहिये थी ना। चलो जाओ.... मैं लेकर आता हूं.... इतना कहकर वो मुस्कुराते हुए मेरे Eye Glass लेने निकल पड़े। शाम होते होते वो लौटे तब तक सभी मुनियों और साध्वियों के बीच ये चर्चा Daily News Paper की तरह पहुंच गयी थी। मेरे गुरु श्री महाप्रज्ञ ने मुझे अपनी गलती का करवाया... 20 साल हो गये उस Accident को मगर मैं अब तक उस Guilt से बाहर नहीं निकल पाया। काश... एसे Guardians सबके हिस्से में आये।



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