गुरु की वात्सल्यता.....
समय कितने ही तमाचे क्यों न मारे। सर पर गुरु का हाथ हो तो सब कुछ क्या होता है वह जो आसान न रहे। हरियाणा की ठिठुरन बढ़ी हो गई थी। अंगूठे के पास ना जाने क्यों बढ़ कर रह गई थी.... कुछ देर पैदल चलना भी दुश्वार था.... दर्द था कि घुटनों से पिंडली तक थर्मामीटर के पारे की तरह कभी ऊपर... कभी नीचे... सफर करता रहता। लड़खड़ाते कदमों से कदम ताल करते हुए एक दिन आचार्य महाप्रज्ञ की नजर मुझपर ठहर गई। करुणा निधान ने फौरन साथ चल रहे मुनि वृंद को इशारों ही इशारों में हाथ से चलाए जाने वाले साधन (वाहन) में मुझे बिठाने का आदेश दे दिया। कुछ दिनों तक साधन में चला तो कहीं जाकर पैरों की सूजन में शांति ओढ़ी। उस शहर में कोई 10 12 दिनों का प्रवास तय था तो गुरु के फरमान पर डॉक्टर ने पैरों में दर्द की वजह की मशीनी जांच की.... और आखिर कुछ Pain Killer खाने और पैरों के तले Sandal पहनने की हिदायत मिल गई। जानकारी परम पावन को Confess की गई.... Pain Killer तो सही है - मगर Sandal... How Come ? अब तक ऐसा कभी हुआ नहीं.... परंपरा स्वीकार नहीं करती। तो क्या किया जाए... विचार हुए.... विमर्श हुए.... फिर आचार्य श्री का फरमान जारी हुआ स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए सैंडल पहनने की स्वीकृति दी जाती है। मैं सोच रहा था कि सिर्फ मेरे लिए मेरे आराध्य ने एक नई परंपरा का आगाज़ कर दिया। कैसे कोइ किसी अपने के लिये इतना स्नेह उड़ेल सकता है। कैसे कोई किसी के बारे में इतना कुछ सोच सकता है। जब उसने कुछ दिया ही ना हो। जिंदगी इससे ज्यादा और क्या चाहेगी और क्या मांगेगी जिंदगी से।
सफ़र Return शुरू हुआ... कदमों ने अपने Sandal को Adjust करने की अनहद कवायदे कि मगर छालों ने उन्हें अपने बदन से उतारने को मजबूर कर दिया.... उन छालों के दर्द पिघलने लगे... यह सोच सोचकर कि गुरु की असीम अपार वात्सल्यता कैसे बेवजह मेरे हिस्से में आ गइ।



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