मेरे रहबर.....


 शुरू तो कर दिया मैंने एक सफर मगर इस सच से बेखबर कि इस सफर का आखरी मोड़, आखरी मंजिल कहा है। मैं मुनि क्या बना - आचार्य महाप्रज्ञ -  पुरी दुनिया जिनकी एक झलक पाने बेताब रहती है, सुबह की पहली किरण हो या धुप ओढ़ी दोपहर, सुरमुइ सांझ हो या चकाचौंध भरी रात, लंबी कतार बस उनके चरणों मे अपने सर की छुअन पाने लगती। और वो मेरे गुरु, मेरे रहबर मेरे सब कुछ हो गये, जिनका प्रवचन सुनने हजारों लाखों घड़ी में 8:30 बजने का बेसब्री से इंतजार करते मैं उनका शिष्य हो गया। जिंदगी में जो कुछ भी बदला उनमे से सबसे दिलचस्प ये था कि अब तक मुझे मेरा नमन अर्पण करने दुनिया के साथ कतार में शामिल होकर इंतजार करना होता मगर अब हक़ से मैं उनके इर्द-गिर्द मंडरा सकता था। अभी तीन दिन ही हुए थे मुझे मेरी पहचान को बदले और आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी ने बड़े प्यार से मुझे अपने पास बुलाया और लेटर पैड का आधा पेज़ फाड़कर उसमें एक लाइन लिखकर मेरे हाथों में सौप दिया.... कुछ पलों के लिये खामोशी पसर गयी। न उन्होंने कहा - न मैंने। इसी खामोशी को ओढ़े... मैं कमरे से बाहर निकल गया। एक कसक अपने मन में लिये की बस इत्तु सा.... कोइ Inspiration... कोइ Motivation नहीं, कोइ ब्रम्हास्त्र.... कोइ गुर सीखने -सिखाने की दिलासा नहीं बस " अच्छा साधु बनना है " क्या मैं बस इतना ही Deserve करता हु ?? एक कश्मकश रूह रूह में शुरू हो गयी। उस हॉल से मेरे रूम का सफर बमुश्किल 15 सेकंड का था। मगर मैंने तय किया 2 मिनट में। मुझे यह क्या हो रहा था। इतनी सी बात को मैं दिमाग पर पहाड़ की तरह क्यों ढो रहा था। शायद मैं इस बात को समझने के लिये उम्र के हिसाब से Mature नहीं था। मगर कुछ तो था जो मुझे - " कुछ और होना चाहिये था। " Internally Confess कर रहा था। मेरे लिये ये Cross Road पर खड़े रहने जैसी Situation थी। क्या मैंने जिन्हें अपना रब मान लिया.... जिन्हें अपना गुरुर, अपना स्वाभिमान, अपना सब कुछ सुपरत कर दिया वो मेरे लिये कुछ लाइनें और नहीं लिख सकते। मैं अपने केशर के स्वस्तिक बनी चादर अपने आप पर ओढ़कर नींद के आगोश में जाने के लिये सो गया.... मगर नींद थी कि उसे भी आंखों से बैर हो गया था। करवटे बदल बदलकर नींद में जाने की कोशिश करने लगा। मगर सब कुछ नकारा। न उठने का मन और न नींद आ रही थी। अचानक उठा आंखे मली, आंखों पर चश्मा चढ़ाया उल्टे पांव हाल ही ओर कदमताल करने का मन बनाने लगा की फिर जाकर महामहिम को कह दु.... जिंदगी में पहली बार मेरे गुरु ने मुझे अपने हाथों से लिखा पैगाम दिया है - वो भी इतना छोटा सा.... मुझे और चाहिए। I'm Not Satisfied With What I Have.... मगर कहना तो दूर.... मैं अपनी जगह से उठ तक नहीं पाया। Finally फैसला ले लिया - होगा इस एक लाइन में कोइ राज.... कोइ रहस्य... वक्त को खुद ही बताने दो की मेरे गुरु ने मेरे लिये सिर्फ ये एक पंक्ति ही क्यों लिखी। आज 21 साल बाद वो Page मेरे हाथ में आया तो उस एक लाइन पर नजर थमी की थमी रह गयी। अब उसके मायने भी समझ में आ गये और बस इत्तु सा क्यू ? के सवाल का जवाब भी मिल गया। अब सिर्फ ये सोच रहा हु कि वो लाइन Milestone थी या मेरी भविष्यवाणी।

Comments