HUMANITY ABOVE ALL....

उस चिलचिलाती दोपहर में सूरज आग
बरसा रहा था, रमन जॉब के लिये कितने दफ्तरों के चक्कर लगाकर आ चुका था... एक
ओर Rejections का Stress, पैदल सफर की थकान और बेशुमार
गर्मी ये क्या हुआ... चलते चलते अचानक गश खाकर बिच सड़क पर ही गिर पड़ा... ये तो गनीमत था की तेज रफ्तार से दौड़ती सड़क से गुजरती हजारो
गाड़ियों में से किसी ने उसे टक्कर नहीं मारी... कइ देर तक बेसुध होकर गिरे रहने के
बाद भी किसी ने मदद के लिये हाथ नहीं उठाया - अचानक एक सफेद चमचमाती Audi Car
रुकी... उसे स्पष्ट सा कुछ सुनाई दिया... खुदा के लिये जल्दी करो... ओर फिर आवाजे
आनी बंद हो गई, जब उसने आँखे खोली तो किसी Hospital में था... वो सड़क पर गिरा बस
इतना सा उसे याद था, उसके बाद क्या हुआ उसे याद नहीं था - सच तो ये था की उसने
उसके बाद जो भी हुआ ना उसने देखा ना महसूस किया जो कुछ गुजरा बेहोशी में ही
गुजरा... सर पर चोट लगी हो ओर खुन बह गया है... कही-कही हाथ और पांव में भी बेंडेज
किये हुए थे... होश में आते ही उसने Doctor से पहला सवाल किया... मुझे यहां लेकर
कौन आया... डॉक्टर ने कहा - ये तो पता नहीं मगर बड़े नेकदिल इंसान थे, नाम तो नहीं
बताया उन्होंने, हां लेकिन सर पर टोपी ओर चेहरे पर लंबी घनी बढ़ी हुई भुरी दाढ़ी साफ
साफ बयान कर रही थी - की वो एक मुस्लमान थे " क्या मैं उनसे मिल सकता हूँ ?
" रमन ने दूसरा सवाल किया... वो तो हॉस्पिटल से सारे चार्जेस देकर कभी निकल
गये.. हां जाते जाते उन्होंने इतना जरुर कहा था - अल्लाह का लाख लाख शुक्र है की इस
नेक बंदे की खिदमत करने का हमें मौका दिया।
आज रमन की मुसलमानों के लिये अब तक पल रही नफरत और बेर की आग कृतज्ञता के राख
के तले दब कर रह गई थी। उसने सुना था - देश में जितने Terrorist Attack हुए थे... जितनी दंगे फसाद की जड़े थी, वो मुसलमानों पर ही खत्म हो जाती है- तब से इस कोम के लिये उसके मन के रैशे
रैशे में कड़वाहट घुल गइ-आज जब एक अंजान मुस्लिम ने बेवजह उसकी मदद की तो उसकी आंखे
नम हो गयी... और वो खुद से कहता रहा- सब मुसलमान एक जैसे नहीं होते।
ये जातिया, ये मजहब, ये फिरकापरस्ती के धागे हम इंसानो ने ही बुने है। किसे प्यार करना है और किसके
लिये मन के कोने कोने में घृणा घोलनी है। किसी भगवान, किसी ग्रन्थ ने तो ये तय नहीं किये, ये ऊंच नीच की भेद
की दीवारे तो किसी धर्म ने नहीं बनाई... तो हमें क्या हक है धर्म के नाम पर आदमी
को आदमी से बांटने का ? स्कुल में बच्चे एक दूसरे
में Close Friends बन जाते है, वो बचपन होता है - जैसे जैसे बड़े होने लगे... हमें सीखा दिया जाता है कि हमारे
Friend Circle में कोइ हिन्दू... कोइ
मुसलमान नहीं होना चाहिए.. और एसी अनगिन हिदायतें... हजारो Boundaries... क्या सच मुच बड़ा होना इतना बड़ा गुनाह है। अगर
है... तो ये बचपन ही बेहतर था, जहां इंसान के नाम के साथ
हिंदुस्तानी... पाकिस्तानी... हिन्दू-मुस्लिम का Tag तो नहीं लगता था...
जब कुदरत ने हमारे लहु का रंग एक बनाया है तो जाती-मजहब के नाम पर हम कौन होते है
एक दूसरे का खून बहाने वाले। ये मुद्दा बेशक किसी की सियासी ओहदे को मजबूत कर दे
मगर इस सुनामी में मौत सिर्फ मानवता की ही हो रही है। क्या आप भी मेरी तरह सोचते
है तो... अब से इंसान को इंसान की तरह Treat करें... सूरज की
किरणों की तरह, चाँद की चांदनी की तरह, पेड़ो की हवाओ की तरह, फूलों की खुशबु की तरह बिना
किसी में फर्क किये... बगैर किसी पर मजहब का इल्जाम लगाये।
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