Nothing Is Impossible

Impossible itself Says I'm Possible....

हमारा कल !! अंजाना, अनदेखा, अनसुना सा और हम कल्पनाओं के ताने बाने बुनते चले जाते है। हजारों कुलाचे भरते सवालों के जवाब की तलाश में.... किसी ने अपना आने वाला कल नहीं देखा... मगर इंतजार है कि कुछ वो हो जाये जो आज नहीं हो पाया। मैंने भी बांध ली थी कुछ उम्मीदें, अपनी आने वाले कल से। और देखने लगा था उड़ने के सपने उनकी आंखों में जिनके हाथों में थी मेरी उंगलियां। कुछ लोग ईश्वर के रूप में जिंदगी की देहरी पर उतरते है - ये सिर्फ कहानी - किस्सों में सुना था... अब यकीन करने लगा था.... कि एसा भी होता है - इस कायनात में कि किसी के आने से जिंदगी अचानक Miracles की ओर U-Turn ले लेती है। मैं जिसे School में पढ़ाई के लिये बुद्धराम का Tag मिल चुका था, कभी Assignments पूरे नहीं करने, कभी Test में Passing Marks तक भी नहीं पहुंच पाने से पता नहीं कितनी बार हथेलियों पर मार खाते हुए Wooden Scales टूट जाया करते थे... उसे कुछ बनाने में जुट गये थे मुनि श्री सुरेश कुमार जी, सुबह - शाम.... हर पल सख्ती.... न उल-फिजुल बातें, न टाइम पास.... बस सीखो... सीखो और सीखते रहो.... सारे दिन किताब के अंदर आंखे जमाये रखो.... बड़ा Boring और Irritating Task लगता था.... फिर भी डर बेठ गया था.... कि वो कही नाराज ना हो जाये.... जिन्होंने खुद से वादा किया है मुझे सरजने का ये तो तय है जिसकी आप सबसे ज्यादा Respect करते है, जिसे सबसे ज्यादा प्यार करते है उनकी एक-एक पल की नाराजगी से डर लगने लगता है.... मैं भी उसी मोड़ पर खड़ा था। कभी एसा भी हुआ - कि लिडर के लिडर मसलन मुनि श्री सुमेरमल जी "सुमन" को नम आंखों से गुजारिश लेकर जाता कि बहुत सख्ती बरती जाती है मुझपर। मुनि श्री ने प्यार से सर को सहलाते हुए कहा : जो भी सुरेश जी कर रहे है उसमें कही न कही तुम्हारा कल छिपा है.... निराशा हाथ लगी और दिल के एक कोने में डर भी कुलाचे भरने लगा कि शिकायत तो कर दी... कही इस शिकायत की भनक भर लग गई तो जरा सा जो कतरा भर स्नेह हिस्से में आता है कही उससे भी हाथ ना धो बैठू.... मगर गनिम थी कि एसा कभी नहीं हुआ। मुनि श्री के अंदाज में कभी फेरबदल नहीं देखा। वक्त गुजरता रहा..... सख्तियों और डांट के बीच मैं वो होता रहा जो मुझे होना चाहिये था। वो सीतला सप्तमी का दिन था.... बात ही बात में मुनि श्री की एक बात दिल को छू गइ... कि सीखने की रफ्तार नहीं बढ़ाओगे तो पिछे रह जाओगे.... वो बात चुभने जैसी नहीं थी... सिर्फ एक Inspiration था... मगर चुभ गइ.... हाथ में व्यवहार बोध की एक किताब थी... आचार्य तुलसी की एक मुनि का व्यवहार कैसा हो ? इस सवाल का पड़ताल करती किताब। पुरी की पुरी सौ गाथाये.... कुछ दो लाइनों की... कुछ पांच-सात लाइनों की। और मुझपर उस पूरी किताब को एक दिन में याद करने का जुनून सवार हो गया। Trust Me.... हिंदी जिसे Optional Subject के तौर पर मिला हो.... उसे एक दिन में 100 गाथा याद करने का Task... मतलब Mission Impossible... क्योंकि अब सवाल जुनून का था - तो सुरज के ढलने से पहले मैंने एक-एक कर एक सौ गाथाये सुना दी.... खुशियां बाछे उछल रही थी.... Mission Impossible आखिर Possible हो ही गया। मैं लगातार जीत रहा था... और मेरी हर जीत में मेरे God Father शामिल थे.... अब समझ में आ रहा है कि जब तक पत्थर को कोइ कारसाज और चोट ना मिले तब तक वो किसी मंदिर में भगवान का दर्जा पाने की हैसियत उठा नहीं पाता।

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